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Monday, 11 July 2011

"गाँव का बचपन"

Poet: Kr. Shiv Pratap Singh
http://kunwarkilekhni.blogspot.com

Saturday, 9 July 2011

बचपन (Bachpan)



बचपन

वह मासूम बचपन कहाँ खो गया है |
वह अल्ल्हड़ लड़कपन कहाँ सो गया है ||


वह दादी की गोदी वह अम्मा की लोरी,
बहन भाइयों संग की वह छुप्पा चोरी,
बिना बात हंसना औ ताली बजाना,
कभी नाच कर सारे घर को रिझाना,
वह आँगन जहाँ डगमगा कर चला था,
जहां प्रेम तरु लहलहा कर खिला था,
जो आते हैं आंसू उन्हें रोकता हूँ,
मगर साथ ही साथ यह सोचता हूँ,
मेरे घर का आँगन कहाँ खो गया है ||

वह इमली की चटनी वह मिस्से परांठे,
वह मक्का के भुट्टे वह बाबा की डांटें,
वह पेड़ों का चढ़ना वह अमियाँ चुराना,
वह गलियों का हुडदंग बारिश का नहाना,
वह सावन की मल्हार होली की कजरी,
वह सूखा सा पतझड़ बरसती सी बदरी,
सभी खो गए हैं समय की लहर में,
यही सोच है ज़िन्दगी की डगर में,
वह मतवाला सावन कहाँ खो गया है ||


वह कोयल की कू कू वह मोरों की पें पें,
वह चिड़ियों की चूँ चूँ वह तोतों की टें टें,
वह दादू की खांसी में हुक्के की गड़गड़,
पड़ोसन की चख़ चख़ वह दादी की बड़ बड़,
वह पनघट पे कपड़ों के धोने की छपछप,
वह चक्की की घर घर वह मूसल की ठप ठप,
हर एक में बसा गीत का स्वर निराला,
औ जिसमें रचा बालपन भोला भाला,
वही बालपन अब कहाँ खो गया है ||
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Poet: Kr. Shiv Pratap Singh