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Wednesday, 29 February 2012

"मेरी बहन कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से कविता बुनना नहीं जानती-----राजीव चतुर्वेदी




"मेरी बहन कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से

कविता बुनना नहीं जानती

वह बुनती हैं हर सर्दी के पहले स्नेह का स्वेटर

खून के रिश्ते और वह ऊन का स्वेटर
कुछ उलटे फंदे से कुछ सीधे फंदे से
शब्द के धंदे से दूर स्नेह के संकेत समझो तो
जानते हो तो बताना बरना चुप रहना और गुनगुनाना
प्रणय की आश से उपजी आहटों को मत कहो कविता
बुना जाता तो स्वेटर है, गुनी जाती ही कविता है

Tuesday, 28 February 2012

भूख -- तुम्हारे लिए होगी एक दर्दनाक मौत की इबारत ----- राजीव चतुर्वेदी


"भूख -- तुम्हारे लिए होगी एक दर्दनाक मौत की इबारत
हम तो हैं आढ़तिये हमारी खड़ी होती हैं इसी पर इमारत
हम हैं नेता हमारे लिए है हर भूख से मरनेवाला मुर्दा बस महज एक मुद्दा
हमारी तो है राशन की दूकान
खरीद सको तो खरीदो बरना तुम्हारी भूख से हमें क्या काम
सुना है आप डॉक्टर हैं सरकारी, आप भी खाते हैं घूस की तरकारी
डॉक्टर की राय में भूख से मौत नहीं होती मौत तो खून की कमी से होती है
मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष तो वह होता है जिसके घूस खाने से पूरा देश ही रोता है
घूस की डकार लेकर वह बताता है कि भूख से मौत बहुत बुरी बात है पर उसका प्रतिशत कम और औसत ज्यादा है
आपके समझ नहीं आई होगी उनकी यह बात पर देश भी अभी नहीं समझ पाया है
क़ानून के जानकार बताते हैं कि संविधान में भूख दर्ज ही नहीं है अतः असंवैधानिक है
भूख लेखकों कवियों लफ्फाजों के लिए है साहित्य का कच्चा माल
एनजीओ वाले भूख के नाम पर जो दूकान चलाते हैं उसके लिए "भूख" एक शुभ सा समाचार है
किसान फसल बो कर भूख मिटा रहा है और हम
और हम भूख उगा रहे हैं
देखना एक दिन फसल बो कर भूख मिटा रहा किसान भूखा मर जाएगा
और हमने तो शब्दों से कागज़ पर जो भूख की फसल बोई है और पर पैसे का खेत लहलहाएगा
पर याद रहे --भूख में जिन्दगी बेहद सुन्दर होती है
कभी देखा है फ़न फैलाए सांप
डाल पर उलटा लटक कर फल कुतरता तोता 
चोंच से दाना चुगते चिड़ियों के बच्चे
शिकार का पीछा करता चीता
दूध पीता बछड़ा
हाथ में हथियार लेकर अधिकार के लिए लड़ता भूखा आदमी
वैसे ही जैसे जिन्दगी के महाभारत में हाथ में रथ का पहिया ले कर खड़े हों कृष्ण." -----राजीव चतुर्वेदी

World Hunger Facts - Submitted by Danny

World Hope International
› In the Asian, African and Latin American countries, well over 500 million people are living in what the World Bank has called "absolute poverty".

› Every year 15 million children die of hunger.

› Throughout the 1990's more than 100 million children will die from illness and starvation. Those 100 million deaths could be prevented for the price of ten Stealth bombers, or what the world spends on its military in two days!

› For the price of one missile, a school full of hungry children could eat lunch every day for 5 years.

› The World Health Organization estimates that one-third of the world is well-fed, one-third is under-fed one-third is starving- Since you've entered this siteat least 200 people have died of starvation. Over 4 million will die this year.

› One in twelve people worldwide is malnourished, including 160 million children under the age of 5. United Nations Food and Agriculture.

› The Indian subcontinent has nearly half the world's hungry people. Africa and the rest of Asia together have approximately 40%, and the remaining hungry people are found in Latin America and other parts of the world. Hunger in Global Economy.

› Nearly one in four people, 1.3 billion - a majority of humanity - live on less than $1 per day, while the world's 358 billionaires have assets exceeding the combined annual incomes of countries with 45 percent of the world's people. UNICEF.

› 3 billion people in the world today struggle to survive on US$2/day.

› In 1994 the Urban Institute in Washington DC estimated that one out of 6 elderly people in the U.S. has an inadequate diet.

› In the U.S. hunger and race are related. In 1991 46% of African-American children were chronically hungry, and 40% of Latino children were chronically hungry compared to 16% of white children.

› The infant mortality rate is closely linked to inadequate nutrition among pregnant women. The U.S. ranks 23rd among industrial nations in infant mortality. African-American infants die at nearly twice the rate of white infants.

› One out of every eight children under the age of twelve in the U.S. goes to bed hungry every night.

› Half of all children under five years of age in South Asia and one third of those in sub-Saharan Africa are malnourished.

› In 1997 alone, the lives of at least 300,000 young children were saved by vitamin A supplementation programmes in developing countries.

› Malnutrition is implicated in more than half of all child deaths worldwide - a proportion unmatched by any infectious disease since the Black Death.

› About 183 million children weigh less than they should for their age.

› To satisfy the world's sanitation and food requirements would cost onlyUS$13 billion- what the people of the United States and the European Union spend on perfume each year.

› The assets of the world's three richest men are more than the combined GNPof all the least developed countries on the planet.

› Every 3.6 seconds someone dies of hunger.

› It is estimated that some 800 million people in the world suffer from hunger and malnutrition, about 100 times as many as those who actually die from it each year. 

Monday, 6 February 2012

माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई...



माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई

पंचतारा होटलों की शान शौकत कुछ न भाई 
खाक छानी होटलों की चाहिए जो ना मिला
क्रोध में हो स्नेह किसका? कल्पना से दिल हिला



प्रेम मे नहला गई जब जम के तेरी डांट खाई
माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई ....



तेरी छाया मे पला सपने बहुत देखा किए
समृद्धि सुख की दौड़ मे दुख भरे दिन जी लिए
महल रेती के संजोए शांति मै खोता रहा
नींद मेरी छिन गई बस रात भर रोता रहा



चैन पाया याद करके लोरी जो तूने सुनाई
माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई ....



लाभ हानि का गणित ले ज़िंदगी की राह में
जुट गया मित्रों से मिल प्रतियोगिता की दाह में
भटका बहुत चकाचौंध में खोखला जीवन जिया
अर्थ ही जीने का अर्थ, अनर्थ में डुबो दिया



हर भूल पर ममता भरी तेरी हँसी सुकून लाई
माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई। ....

Tuesday, 27 December 2011

आओ फरिश्तों से कुछ बात करें ----राजीव चतुर्वेदी


"आओ फरिश्तों से कुछ बात करें 

बहुत उदास है ये रात 

कोहरे के लिहाफ ओढ़ कर शायद तुम हो जो झांकती हो मुंडेरों से अभी 
चाँद की बिंदी लगा लो अपने माथे पर 
समझलो तुम सुहागिन हो 
तुम्हारी मांग में शफक सिन्दूर भर कर खोगई है भोर में 
मैं लौट के आऊँगा देख लेना 
तन्हाईयों में गूंजती रुबाईयों जैसा 
धूप में सूखती रजाईयों जैसा 
मैं लौट के आऊँगा देख लेना 
हादसे में हाँफते सुबह के अखबार में सिमटा 
देख लो तुम्हारी गोद में सर रखे सूरज सा लेटा हूँ मैं 
एक रोशन सच चरागों से चुरा लाया हूँ मैं 
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का 
मैं खो जाऊंगा तह किये कपड़ों में रखे स्नेह के सुराग सा 
मैं याद आऊँगा सूनी मांग से सिन्दूर के संवाद सा 
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का 
मैं जाता हूँ सितारों ने बुलाया है दूर से मुझको 
ओढ़ लो कोहरे की चादर 
बहुत सर्द है रात." ----राजीव चतुर्वेदी

Monday, 26 December 2011

Mujhay Itna Pyaar Na Do Papa



Wednesday, 7 December 2011

उसके हाथ में कांटे और सपनों में गुलाब था ----राजीव चतुर्वेदी



"उसके हाथ में कांटे और सपनों में गुलाब था,

जिन्दगी में खालीपन जुबां पे इन्कलाब था

पाँव में जूते नहीं वह मंजिलें पहने चला था 

उसकी सूखी सी आँखों में उफनता सैलाब था

रास्ते रिश्तों को लेकर चल पड़े थे मकानों से दूर 

भावना सदमें में थी भीतर भी एक फैलाब था 

रिश्ते सर्द हो चले थे, सांस सहमी थी, दिशाएं शून्य थी 

समंदर की थी ख्वाहिश उसे, मेरे दिल में तो तालाब था." ----राजीव 

चतुर्वेदी

Sunday, 4 December 2011

अपनी भी जान दाव पर लगाओ ! " --- राजीव चतुर्वेदी



" पावर हाउस के बाहर झोपड़ी में लटकी है एक लालटेन,


भोजनालयों के बाहर भूखे भिखारियों की भीड़


स्कूलों के बाहर खिलोने से खेलने की उम्र में खिलोने बेचते अनपढ़ बच्चे


गंगोत्री के इलाके में पेयजल समस्या




जो इलाके सूखे से त्रस्त होते है वही बाढ़ में पस्त होते हैं

मंदिर मस्जिद गुरद्वारों में आतंकियों को पनाह

प्यार का अभाव पर सेक्स सरे राह

शहरों में मोटापा और किसानो में भुखमरी




भूखे पेट भरे गोदाम अखबारों में चर्चा आम 

मंदिरों में सन्नाटा और जेलें हाउसफुल

सांसद में बहस बंद और सड़क पर बहसें

दिल से पतिता ब्लॉग पर कविता




मानवता ने सबकुछ कर लिया है प्रभु !

तुम सही वितरण ही करदेते , वह भी नहीं कर सके

हम कब तक तुम्हारी लड़ाई लड़ें तुम भी तो कभी आओ

अपनी भी जान दाव पर लगाओ ! " --- राजीव चतुर्वेदी

Tuesday, 29 November 2011

आज कुछ नहीं लिखूंगा. " -- राजीव चतुर्वेदी



"आओ कुछ अच्छा लिखें
राष्ट्रपति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
इन्द्र गांधी की रसोइया का राष्ट्रपति बन जाना उनके लिए गर्व की बात है 
प्रधान मंत्री पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
हालांकि उन्हें देश की जनता ने कभी नहीं चुना किन्तु वह प्रधानमंत्री हैं
सोनिया पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क्योंकि वह देश राजनीति से नहीं देह राजनीति के रास्ते यहाँ तक पहुँची हैं
राहुल गांधी हों या महाजन पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
अर्थ नीति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
राजनीति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
खेल नीति / विदेश नीति पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
क़ानून व्यवस्था पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
पुलिस पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
मायाबती/ मुलायम/ करूणानिधि/ यदुरप्पा /कल्माणी / कनीमोझी पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
"शीला" कहो तो "शीला की जवानी" याद आती है दिल्ली की मुख्यमंत्री नहीं
रोबर्ट्स बढेरा हों या चटवाल सभी हैं मालामाल पर देश हो रहा है कंगाल उस पर अच्छा नहीं लिखा जा सकता
कोंग्रेस /भाजपा /माकपा पर अच्छा लिखा नहीं जा सकता
अपने और पराये काले धन का अनुलोम विलोम करते स्वामी रामदेव पर भी अब अच्छा लिखने का मन नहीं करता 
अपने गुरु की रहस्यमय ह्त्या का राज्याभिषेक रामदेवनुमा राजनीति को रोमांचित करता है
जनता यानी कि हमारे आपके चितकबरे चरित्र पर भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
NGO के टेस्ट ट्यूब बेबी अग्निवेश,संदीप पाण्डेय,तीस्ता सीतलवाद,किरण बेदी, केजरीवाल, शबाना आजमी , महेश भट्ट
अनुदानों के कीचड़ में किलोलें कर रहे हैं, इन पर भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
अन्ना का पन्ना अभी लिखा जाना शेष है
आसान किश्तों में जेल जा रहे और जनता से जूते थप्पड़ खा रहे
मनमोहन मंत्रिमंडल के बारे में भी कुछ अच्छा नहीं लिखा जा सकता
आतंकवाद में शामिल मौलवियों के बारे में भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
और यौनशोषण के आरोपों में लिप्त महंतों और पादरियों के बारे में भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता
क्रिकेट पर दाउद की दया है, उसका हर मैच फिक्स है बाकी खेल दयनीय से हैं उनकी दशा पर अच्छा नहीं लिखा जा सकता 
इसी लिए आज छुट्टी
आज कुछ नहीं लिखूंगा. " -- राजीव चतुर्वेदी

Tuesday, 19 July 2011

Naari Bhul

http://naritereroopanek.blogspot.com/ Written By R.N. Singh Bhopal @ Nari Tere Roop Anek Blogspot


Monday, 11 July 2011

"गाँव का बचपन"

Poet: Kr. Shiv Pratap Singh
http://kunwarkilekhni.blogspot.com

Saturday, 9 July 2011

बचपन (Bachpan)



बचपन

वह मासूम बचपन कहाँ खो गया है |
वह अल्ल्हड़ लड़कपन कहाँ सो गया है ||


वह दादी की गोदी वह अम्मा की लोरी,
बहन भाइयों संग की वह छुप्पा चोरी,
बिना बात हंसना औ ताली बजाना,
कभी नाच कर सारे घर को रिझाना,
वह आँगन जहाँ डगमगा कर चला था,
जहां प्रेम तरु लहलहा कर खिला था,
जो आते हैं आंसू उन्हें रोकता हूँ,
मगर साथ ही साथ यह सोचता हूँ,
मेरे घर का आँगन कहाँ खो गया है ||

वह इमली की चटनी वह मिस्से परांठे,
वह मक्का के भुट्टे वह बाबा की डांटें,
वह पेड़ों का चढ़ना वह अमियाँ चुराना,
वह गलियों का हुडदंग बारिश का नहाना,
वह सावन की मल्हार होली की कजरी,
वह सूखा सा पतझड़ बरसती सी बदरी,
सभी खो गए हैं समय की लहर में,
यही सोच है ज़िन्दगी की डगर में,
वह मतवाला सावन कहाँ खो गया है ||


वह कोयल की कू कू वह मोरों की पें पें,
वह चिड़ियों की चूँ चूँ वह तोतों की टें टें,
वह दादू की खांसी में हुक्के की गड़गड़,
पड़ोसन की चख़ चख़ वह दादी की बड़ बड़,
वह पनघट पे कपड़ों के धोने की छपछप,
वह चक्की की घर घर वह मूसल की ठप ठप,
हर एक में बसा गीत का स्वर निराला,
औ जिसमें रचा बालपन भोला भाला,
वही बालपन अब कहाँ खो गया है ||
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Poet: Kr. Shiv Pratap Singh