उनके अंदाज़ में मौसम की भी शोख़ी शामिल,
उसपे छाई हुई यह काली घटा ज़्यादा है ||
रिंद भी आके यूँ मैख़ाने में रुक जाते हैं,
आज हर सम्त ही साक़ी का समा ज़्यादा है ||
दुनिया कहती है कि उल्फ़त है ज़हर धीमा सा,
तल्खियाँ भी हैं मगर मीठा ज़रा ज़्यादा है ||
चूम के होठों से ख़ंजर जो उतारा दिल में,
क़त्ल करने की यह क़ातिल की अदा ज़्यादा है ||
उनको अहसास है ग़लती का मगर क्या कहिये,
आ तो जाते वह मगर उनकी अना ज़्यादा है ||
HI, Wow I like this Poetry. Dev
ReplyDeletewah,kuvar shiv pratap singh ab ki bat dil ko kuch chu gayi jayda hai.
ReplyDeletethat's very fabulous poetry
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