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Wednesday, 6 July 2011

आज क्या बात है पीने का मज़ा ज़्यादा है |


                      उनके अंदाज़ में मौसम की भी शोख़ी शामिल, 
उसपे छाई हुई यह काली घटा ज़्यादा है || 

रिंद भी आके यूँ मैख़ाने में रुक जाते हैं, 
आज हर सम्त ही साक़ी का समा ज़्यादा है || 

दुनिया कहती है कि उल्फ़त है ज़हर धीमा सा, 
तल्खियाँ भी हैं मगर मीठा ज़रा ज़्यादा है ||

चूम के होठों से ख़ंजर जो उतारा दिल में,
क़त्ल करने की यह क़ातिल की अदा ज़्यादा है ||

                     उनको अहसास है ग़लती का मगर क्या कहिये, 
आ तो जाते वह मगर उनकी अना ज़्यादा है || 

3 comments:

  1. HI, Wow I like this Poetry. Dev

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  2. wah,kuvar shiv pratap singh ab ki bat dil ko kuch chu gayi jayda hai.

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