जग की सारी व्यथा भुला कर स्वप्नों में सो जाऊं ||
तुम अनंत जीवन की साधना,
गायक की साकार कल्पना,
स्वर लहरी की माला गूंथूं और तुमको पहनाऊं ||
जीवन तुम बिन यूँ अंधियारा,
लहर बिना ज्यों शांत किनारा,
अपनी भावना का प्रतीक में, दीपक एक जलाऊं ||
चन्दा की उन्मुक्त चांदनी,
प्रणय गीत की सरस रागिनी,
मधुर मिलन के इस अवसर पर कैसे में सो जाऊं ||
लेखक कुंवर शिव प्रताप सिंह
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