"लोकतंत्र की पृष्ठभूमि की पड़तालों में
नन्हें से नचिकेता हम हैं
यक्ष प्रश्न के लक्ष्य हमी हैं
सांख्य सवालों के हम अर्जुन
आज उत्तरा की आँखों में आंसू से अभिमन्यु हम हैं
खामोशी का खामियाजा हम हैं
सारनाथ के संकेतों से अमरनाथ तक
अमरनाथ से हर अनाथ तक
शान्ति पर्व से सुकरातों तक
राजपथो से फुटपाथों तक
हर अधीर को अब समझाओ तुम सुधीर हो
तक्षशिला से लालकिला तक पूरक प्रशन फहरते देखो
जन-गण-मन के जोर से चलते गणपति के गणराज्य समझ लो
आत्ममुग्धता का अंधियारा और अध्ययन का उथलापन
गूलर के भुनगों की दुनिया कोलंबस की भूल के आगे नतमस्तक है
हर जुगनू की देखो ख्वाहिश सूरज की पैमाइश ही है.
नचिकेता हो , यक्ष सभी का लक्ष यही है
लोकतंत्र के सर्वमान्य तुम ध्रुव को समझो
याज्ञवल्क के यग्य समझना तुमको बाकी
तत्वज्ञान की तीव्र त्वरा में बस इतना स्वीकार करो तुम
'सभ्यता सवाल नहीं उत्तर होती है'
और यमों की इस बस्ती में नन्हें से नचिकेता तुम हो." --- राजीव चतुर्वेदी
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