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Saturday, 19 May 2012

फिर अचानक भूख क्यों गुनगुनाने लगे." -----राजीव चतुर्वेदी

"शहनाईयाँ क्यों सो गयीं इस रात को 
मर्सीये मर्जी से क्यों गाने लगे,
राजपथ के रास्ते क्यों रुक गए 
जनपथों पर लोग क्यों जाने लगे 
इस शहर में लोग तो भयभीत थे 
फिर अचानक भूख क्यों गुनगुनाने लगे 
मैंने तो पूछा था अपने वोटों का हिसाब 
वो नोटों का हिसाब क्यों बतलाने लगे 
घर का चौका चीखता है खौफ से, खाली कनस्तर कांखता है 
हमारी कंगाली का हिसाब शब्दों की जुगाली से संसद में वो बतलाने लगे 
राजपथ के रास्ते क्यों रुक गए 
जनपथों पर लोग क्यों जाने लगे 
इस शहर में लोग तो भयभीत थे 
फिर अचानक भूख क्यों गुनगुनाने लगे.
-----राजीव चतुर्वेदी

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