भाल त्रिपुण्ड, अर्ध नारीश्वर, नीलकन्ठ जन सुख कारी ||
महादेव देवों के अधिपति बाघम्बर तन पर सोहे,
सीस गंग अर्धंग पार्वति, अर्ध चन्द्र माथे मोहे,
हर हर बम बम के निनाद से गूँज रही दुनिया सारी ||
डिमक डिमक डमरू की ताल पर नाचे धरा गगन सारा,
जटा जूट से कल कल बहती गंगा की अमृत धारा,
शंकर की हुंकार काल सम, वक्र भ्रकुटि प्रलयंकारी ||
बेल पत्र मंदार पुष्प और दूध शहद जल की धारा,
भंग धतूरा, त्रिपुंड चन्दन से अभिषेक लगे न्यारा,
करूँ वन्दना योगेश्वर की मैं सेवक आज्ञाकारी ||
क्षमाशील तुम दयावान प्रभु तुमने सब पापी तारे,
बुद्धिहीन मैं, शरणागत हूँ, क्षमा करो अवगुण सारे,
अपनी भक्ती का प्रसाद दो मुझको नाग मुकुट धारी ||
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Poet: Kr. Shiv Pratap Singh
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