पत्नी के अपमान और आत्मदाह से
क्षुब्ध हो कर
महादेव ने तांडव से
विश्व में प्रलय का आवाहन किया!
त्रेता में
सीता हरण के अक्षम्य अपराध के
फलस्वरूप राम ने,
राक्षसराज रावण की अजेय स्वर्ण लंका
नष्ट कर दी और
समस्त राक्षस वंश का समूल विनाश किया!
द्वापर में पांडवों ने
द्रौपदी के चीर हरण के अपराध में
दुर्योधन आदि कौरवों सहित
अट्ठारह अक्षौहिणी सेना का नाश किया!
परन्तु आज कलियुग में
प्रतिदिन
अनगिनत अपमान, अपहरण व
बलात्कार होते हैं,
परन्तु किसी को कुछ महसूस नहीं होता,
केवल नारे, हिंसात्मक प्रदर्शन व हड़ताल से
मनुष्य का अहम् संतुष्ट हो जाता है!
और वह भौतिक सुखों की
कल्पना में सो जाता है!
केकई, मंथरा आज भी हैं,
रावण, कुम्भकरण कभी मरे नहीं,
दुर्योधन, शकुनी कहीं गए नहीं,
वह तो आज
सामाजिक वातावरण के
कण कण में व्याप्त हैं,
परन्तु न तो कोई वाल्मीकि
किसी नवीन रामायण की रचना करता है,
और न ही कोई कृष्ण
किसी अर्जुन को गीता का
उपदेश देता है!
हाँ सुनाई देता है
धर्मान्धता का चीत्कार,
बावरी मस्जिद के खंडहरों पर
जय श्री राम की पुकार,
अल्लाहो अकबर की आड़ में
महाजिरों और निर्दोष काश्मीरियों का
क़त्ल व बलात्कार,
धर्म के नाम पर आतंकवाद की हुंकार,
वोट नीति वाले राजनैतिक दलों द्वारा
धर्म का व्यापार,
और फिर सब शांत हो जाता है
जब धर्मस्थल के पीछे बजते हुए
लाउड स्पीकर से सुनाई देता है
"चोली के पीछे क्या है"!!
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Poet: Kr. Shiv Pratap Singh
http://kunwarkilekhni.blogspot.com
bahut sunder chitran kiya hai.
ReplyDeletePerfectly True.
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