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Monday, 15 August 2011

आज़ादी तो वृद्ध हो गयी

आज़ादी तो वृद्ध हो गयी, भ्रष्टाचार जवान हो गया !
भारत
में दुःख के दिन छाये हर नेता बेईमान हो गया !!

देश
पे मिटने वाले सारे काल के गाल में डूब गए,
बागडोर
जिन हाथों में है उन से भी सब ऊब गए,
जिस
पर किया भरोसा सबसे पहले वह शैतान हो गया !!

राजनीति
पर धर्म का पलड़ा ज़ात पांत, भाषा का झगड़ा,
रिश्वत
, चोर बाजारी के संग ऊँच नीच ताक़त का रगड़ा,
देख
के यह शतरंजी चालें हर कोई हैरान हो गया !!

पहले
भी तो भ्रष्ट और जैचंद सरीखे देश में थे,
करने
को अपना स्वार्थ सिद्ध, साधू पंडित के भेष में थे,
भ्रष्टाचार
की खूँख्वारी से अब सब कुछ शमशान हो गया !!

जन
संख्या भाषा के नाम हर सूबा बटता जाता है,
जनता
का प्रतिनिधि लेकिन वह जनता से कटता जाता है,
ताक़त
और पैसा ही अब नेताओं का ईमान हो गया !!
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कवि
: कुंवर शिव प्रताप सिंह १५ अगस्त २०११

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