तो मैने वह सांकल आहिस्ता से छोड़ दी,
कि कहीं कोई आवाज ना हो जाए/
कि कहीं कोई आवाज ना हो जाए/
अपने जूते हाथ मे उठा लिए और दबे पांव सीढियां उतर गया,
कहीं कोई आवाज ना हो जाए और कहीं द्वार खुल ही ना जाएँ /
और नीचे उतर कर में जोर से भगा उस घर से दूर ,
और पलट कर भी नहीं देखा,
जब तक उस द्वार की झलक दिखाई देनी बंद ना हो गयी/
अब भी मै इश्वर को खोजता हूँ/
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