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Sunday, 22 January 2012

शब्द युद्ध करो, शास्त्र युद्ध करो , शस्त्र युद्ध करो !!" -- राजीव चतुर्वेदी


"स्वतंत्रता के महास्वप्न का मध्यांतर है यह.

एक एक कर व्यवस्था के खम्बे गिर रहे हैं. 

वह विधायिका बाँझ है जो आज तक देश को देसी क़ानून भी न दे सकी. 

न्यायपालिका नपुंसक तो थी ही बेईमान भी है.

कार्यपालिका यानी नौकरशाही कर्महीन (कमीन) है यह सभी जानते है. 

कहाँ रोयें ? मीडिया में ? मीडिया अब मंडी बन चुकी है. 

मीडिया मंडी की रंडी से समाचार व्यापारी / कर्मचारी धंधा और गोरखधंधा कर रहे है . 

उठो नया सृजन करो ! 

यह देश इन घोटालेबाजों के बाप का नहीं आप का भी है . 

इनका वैचारिक और शारीरिक खंडन करो. 

शब्द युद्ध करो, शास्त्र युद्ध करो , शस्त्र युद्ध करो !!" -- राजीव चतुर्वेदी

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