"स्वतंत्रता के महास्वप्न का मध्यांतर है यह.
एक एक कर व्यवस्था के खम्बे गिर रहे हैं.
वह विधायिका बाँझ है जो आज तक देश को देसी क़ानून भी न दे सकी.
न्यायपालिका नपुंसक तो थी ही बेईमान भी है.
कार्यपालिका यानी नौकरशाही कर्महीन (कमीन) है यह सभी जानते है.
कहाँ रोयें ? मीडिया में ? मीडिया अब मंडी बन चुकी है.
मीडिया मंडी की रंडी से समाचार व्यापारी / कर्मचारी धंधा और गोरखधंधा कर रहे है .
उठो नया सृजन करो !
यह देश इन घोटालेबाजों के बाप का नहीं आप का भी है .
इनका वैचारिक और शारीरिक खंडन करो.
शब्द युद्ध करो, शास्त्र युद्ध करो , शस्त्र युद्ध करो !!" -- राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment
Please Leave Your Precious Comments Here