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Sunday, 22 January 2012

हमको डसते नाग को अपना जहर मालूम है." -- राजीव चतुर्वेदी



" तेरी निगाह की वर्फ पिघलने लगी है आज 




में भी तो नदी हूँ मुझे अपना सफ़र मालूम है." 




सूर्य भी पर्वत की ढलानों से लुढ़क कर आ रहा है 




में सुलगता हूँ अगरबत्ती सा सुगंधों को हुनर मालूम है 




सियासत बीन बजाती रहे अब संसदों में 



हमको डसते नाग को अपना जहर मालूम है." -- राजीव चतुर्वेदी

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