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Tuesday 17 April 2012

अब तो दीपक बुझ रहा है जल चुके विश्वास का." ----राजीव चतुर्वेदी


‎"बड़ी उदास है यह रात, सर्द हैं रिश्ते,

हवाएं हांफती है, खिड़कियाँ भी खौफ में हैं,

सर्द होते जा रहे रिश्तों के रास्ते लम्बे हैं यहाँ,

सत्य का साहस लिए, संताप से सहमा हुआ गुजरता हूँ गुजारिश सा

घटनाएं भी गुजरती हैं घटाओं की तरह जैसे अनुभव हो मरुथर में भी बारिस का,

यादों के अलावों में सुलगती थी जो याद तेरी अब बुझती जा रही है, --ताप लूं .


कल सुबह हर याद को फिर राख बानना है



दौर ऐसा है दिया दयनीय है हर याद का




सो भी जाने दो मुझे, दरवाजों पर अब दस्तक न दो


आस आंसू से बही थी, ओस पंखुड़ियों पे न देख


अब तो दीपक बुझ रहा है जल चुके विश्वास का." ----राजीव चतुर्वेदी





















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