"आओ ख्वाब को तोड़ें उन्हें फिर बेच दें,
बाजार की रस्में रहम का वहम भी मत रख.
दिल कल तोड़ा था यहाँ वह बिक गया
ईमान के टुकड़े यहाँ परवान चढ़ते हैं
भूगोल को तोड़ो तो फिर देश बनते हैं
देश को तोड़ो प्रदेश बनते हैं
प्रान्त को तोड़ो बनोगे मुख्यमंत्री
भ्रान्ति को तोड़ो के तो फिर क्रान्ति होगी
चरित्र के टुकड़े की कीमत कौन देता है ?
हर कोइ मौक़ा मिले तो बेच देता है
सत्य के टुकड़े बिक़े अखबार में देखो
न्याय के टुकड़े जजों की सत्य निष्ठा है
समाज के टुकड़े बनी सब जातियां बिकती हैं जोरों से
दहेज़ को सहेजते लोगों से पूछो --देह बिकती है विवाहों में यहाँ
आत्मा बिकती है हर त्यौहार में
चरित्र के टुकड़े की कीमत कौन देता है ?
हर कोइ मौक़ा मिले तो बेच देता है
ईमान के टुकड़े यहाँ परवान चढ़ते हैं
बाजार की रस्में रहम का वहम भी मत रख
आओ ख्वाब को तोड़ें उन्हें फिर बेच दें. " ----- राजीव चतुर्वेदी
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