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Monday 30 April 2012

सच की महक नहीं बदली है मानक मत बदलो तुम." ----- राजीव चतुर्वेदी


‎"आफताब की आफत आ गयी यार !!
जेनरेटर की मार्केटिंग में लालटेन यह कहती है
सुन कर व्यवहार का सच बाजार के सच पर तरस खाता है
शब्दकोशों में कैद सच को रिहा करो यारो 
पूछ लो अब तितलियों से तथ्य फूलों का
सतह पर जो फतह कर लौटता है ज्ञान के गूलर का भुनगा
कोलंबस की भूल सभी पर भारी है क्यों ?
सत्य तथ्य से उपजेंगे जब सार्वभौमिक होकर समाचार का सूत्र बनेगे
षड्यंत्रों से जब तुम उनको बुन डालोगे
तो विचार के अवशेषों पर खडी प्रचार की प्राचीरें होंगी
और वहां फिर कंदीलों को सूरज कोई कह डालेगा
सच की महक नहीं बदली है मानक मत बदलो तुम." ----- राजीव चतुर्वेदी


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