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Monday, 30 April 2012
सच की महक नहीं बदली है मानक मत बदलो तुम." ----- राजीव चतुर्वेदी
"आफताब की आफत आ गयी यार !!
इन अंधेरों में लालटेनो के कारखाने चल रहे हैं ." ---- राजीव चतुर्वेदी
" क्रान्ति की भ्रान्ति में ग़दर का सफ़र हम कर रहे हैं
आसान किश्तों में जज़बात मेरे मर रहे हैं
खोद डाले हैं सफ़र के रास्ते हमने कुकर्मों की कुदालों से
मसालें हाथ में लेकर मिसालें क्रान्ति की देकर यहाँ क्या हो रहा है ?
विचारों की बस्तियों में आगजनी करके जो कल भाग निकले थे
वही अब राख में क्रान्ति की इबारत लिख रहे हैं
इन अंधेरों में लालटेनो के कारखाने चल रहे हैं ." ---- राजीव चतुर्वेदी
Thursday, 26 April 2012
आहत मन की आहट का आलेख ----यही कविता है ." -----राजीव चतुर्वेदी
"यह राग रंग की आवाजें
यह शब्दों की अंतरध्वनियाँ
यह खून शिराओं से चल कर दिल पर दस्तक जो देता है
स्मृतियों की पदचाप सुनो तुम अपने बीराने में
आहत मन की आहट का आलेख ----यही कविता है
भाषा के पहले शब्दों के नाद हुए अनुवाद जहां
कविता उसके पहले भी आई थी
वह दस्तक दर्ज हुयी है दस्तावेजों में
कुछ अपने आंसू
कुछ खुशियाँ , कुछ खून की बूँदें
शब्दों की नज़रों से ओझल प्यार तुम्हारा
लिख पाओ तो मुझे बताना
कह पाओ तो मुझे सुनाना
जीवन की इस पृष्ठ भूमि पर कविता और लिखी जानी है
यह राग रंग की आवाजें
यह शब्दों की अंतरध्वनियाँ
यह खून शिराओं से चल कर दिल पर दस्तक जो देता है
स्मृतियों की पदचाप सुनो तुम अपने बीराने में
आहत मन की आहट का आलेख ----यही कविता है ." -----राजीव चतुर्वेदी
Thursday, 19 April 2012
'Reflection by Caroline'
Moments interweaving
Intricately and by design
The fabric of my life
Woven by the Divine
Free will I have
In each stitch I make
Yet all of these together
His Hands do take
Stitches made in error
He perfects and beautifies
Stitches disconnected
He harmonizes and unifies
In the here and now
I often cannot see
The beautiful tapestry
He has woven for me
Yet in stepping back
I see the beauty of it all
My Lord has beautified
Each stitch, big and small
For He is the Maker
The Creator of all things
From sorrow and pain
Glory and joy He brings
And create a Masterpiece
He does for me, for you
Perfecting the imperfect
With Love infinite and true
The tapestry of my life
He weaves with all others too
Tapestries of billions
As only the Omnipotent can do
So delight in this tapestry
I will each passing day
Praising continually my God
For His ever perfect Way
It is a fabric of eternity
A tapestry precious and divine
That our Lord weaves with love
In both your life and mine
And in moments interweaving
Precious and by design
We praise the Eternal One
Creator, Master and True Vine
Intricately and by design
The fabric of my life
Woven by the Divine
Free will I have
In each stitch I make
Yet all of these together
His Hands do take
Stitches made in error
He perfects and beautifies
Stitches disconnected
He harmonizes and unifies
In the here and now
I often cannot see
The beautiful tapestry
He has woven for me
Yet in stepping back
I see the beauty of it all
My Lord has beautified
Each stitch, big and small
For He is the Maker
The Creator of all things
From sorrow and pain
Glory and joy He brings
And create a Masterpiece
He does for me, for you
Perfecting the imperfect
With Love infinite and true
The tapestry of my life
He weaves with all others too
Tapestries of billions
As only the Omnipotent can do
So delight in this tapestry
I will each passing day
Praising continually my God
For His ever perfect Way
It is a fabric of eternity
A tapestry precious and divine
That our Lord weaves with love
In both your life and mine
And in moments interweaving
Precious and by design
We praise the Eternal One
Creator, Master and True Vine
~*~
"My ears, Lord, delight in Your voice;
in Your call, Jesus, my soul does rejoice."
'Reflection by Caroline'
in Your call, Jesus, my soul does rejoice."
'Reflection by Caroline'
आओ ख्वाब को तोड़ें उन्हें फिर बेच दें. " ----- राजीव चतुर्वेदी
"आओ ख्वाब को तोड़ें उन्हें फिर बेच दें,
बाजार की रस्में रहम का वहम भी मत रख.
दिल कल तोड़ा था यहाँ वह बिक गया
ईमान के टुकड़े यहाँ परवान चढ़ते हैं
भूगोल को तोड़ो तो फिर देश बनते हैं
देश को तोड़ो प्रदेश बनते हैं
प्रान्त को तोड़ो बनोगे मुख्यमंत्री
भ्रान्ति को तोड़ो के तो फिर क्रान्ति होगी
चरित्र के टुकड़े की कीमत कौन देता है ?
हर कोइ मौक़ा मिले तो बेच देता है
सत्य के टुकड़े बिक़े अखबार में देखो
न्याय के टुकड़े जजों की सत्य निष्ठा है
समाज के टुकड़े बनी सब जातियां बिकती हैं जोरों से
दहेज़ को सहेजते लोगों से पूछो --देह बिकती है विवाहों में यहाँ
आत्मा बिकती है हर त्यौहार में
चरित्र के टुकड़े की कीमत कौन देता है ?
हर कोइ मौक़ा मिले तो बेच देता है
ईमान के टुकड़े यहाँ परवान चढ़ते हैं
बाजार की रस्में रहम का वहम भी मत रख
आओ ख्वाब को तोड़ें उन्हें फिर बेच दें. " ----- राजीव चतुर्वेदी
Tuesday, 17 April 2012
अब तो दीपक बुझ रहा है जल चुके विश्वास का." ----राजीव चतुर्वेदी
"बड़ी उदास है यह रात, सर्द हैं रिश्ते,
हवाएं हांफती है, खिड़कियाँ भी खौफ में हैं,
सर्द होते जा रहे रिश्तों के रास्ते लम्बे हैं यहाँ,
सत्य का साहस लिए, संताप से सहमा हुआ गुजरता हूँ गुजारिश सा
घटनाएं भी गुजरती हैं घटाओं की तरह जैसे अनुभव हो मरुथर में भी बारिस का,
यादों के अलावों में सुलगती थी जो याद तेरी अब बुझती जा रही है, --ताप लूं .
कल सुबह हर याद को फिर राख बानना है
दौर ऐसा है दिया दयनीय है हर याद का
सो भी जाने दो मुझे, दरवाजों पर अब दस्तक न दो
आस आंसू से बही थी, ओस पंखुड़ियों पे न देख
अब तो दीपक बुझ रहा है जल चुके विश्वास का." ----राजीव चतुर्वेदी
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Monday, 9 April 2012
Saturday, 7 April 2012
आओ फरिश्तों से कुछ बात करें बहुत उदास है ये रात----राजीव चतुर्वेदी
"आओ फरिश्तों से कुछ बात करें
बहुत उदास है ये रात
कोहरे के लिहाफ ओढ़ कर शायद तुम हो जो झांकती हो मुंडेरों से अभी
चाँद की बिंदी लगा लो अपने माथे पर
समझलो तुम सुहागिन हो
Friday, 6 April 2012
वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए ----राजीव चतुर्वेदी
"वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए,
पेड़ के पीले से पत्तों की तरह
झाड़ कर दालान से बाहर भी तुमने कर दिया
अब क्या कोपल उगेंगी फिर नए विश्वास की ?
वक्त की आंधी से जो अब गिर रहे हैं सूखे पत्ते से
वह रिश्ते हमारे
सुना है मिट्टी में मिल कर खाद बन जाते यहाँ हैं
इस खाद में फिर ख्वाब का पौधा उगेगा
पत्तीयाँ उसमें भी होंगी
सभ्यता के इस सफ़र में सहमते लोगो सुनो तुम
वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए,
पेड़ के पीले से पत्तों की तरह
झाड़ कर दालान से बाहर भी तुमने कर दिया
अब क्या कोपल उगेंगी फिर नए विश्वास की ?" ----राजीव चतुर्वेदी
पेड़ के पीले से पत्तों की तरह
झाड़ कर दालान से बाहर भी तुमने कर दिया
अब क्या कोपल उगेंगी फिर नए विश्वास की ?
वक्त की आंधी से जो अब गिर रहे हैं सूखे पत्ते से
वह रिश्ते हमारे
सुना है मिट्टी में मिल कर खाद बन जाते यहाँ हैं
इस खाद में फिर ख्वाब का पौधा उगेगा
पत्तीयाँ उसमें भी होंगी
सभ्यता के इस सफ़र में सहमते लोगो सुनो तुम
वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए,
पेड़ के पीले से पत्तों की तरह
झाड़ कर दालान से बाहर भी तुमने कर दिया
अब क्या कोपल उगेंगी फिर नए विश्वास की ?" ----राजीव चतुर्वेदी
Sunday, 1 April 2012
One Thing To Never Forget.
Your presence, is a present to the world.
You're unique and one of a kind.
Your life can be, what you want it to be.
Take the days, just one at a time.
Count your blessings, not your troubles.
You'll make it through, whatever comes along.
Within you, are so many answers.
Understand, have courage, be strong.
Don't put limits on yourself.
So many dreams, are waiting to be realized.
Decisions are too important, to leave to chance.
Reach for your peak, your goal and your prize.
Nothing wastes more energy, than worrying.
The longer one carries a problem, the heavier it gets.
Don't take things too seriously.
Live a life of serenity, not a life of regrets.
Remember, that a little love goes a long way.
Remember, that a lot of love goes forever.
Remember, that friendship is a wise investment.
Life's treasures, are people... Together.
Realize, that it's never too late.
Do ordinary things, in a extraordinary way.
Have health, hope and happiness.
Take the time, to wish upon a star.
And don't ever forget....
For even a day....
How very special you are.
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